बॉलीवुड एक्टर आयुष्मान खुराना अपनी
आगामी फ़िल्म 'बधाई हो' का ट्रेलर हिट होने पर अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखते
है - ओ गॉड, दस मिलियन लोगों ने फ़िल्म 'बधाई हो' का ट्रेलर देख लिया है.
ये
फ़िल्म एक ऐसे परिवार पर आधारित है जिसमें दो बड़े-बड़े बच्चों की मां
गर्भवती हो जाती है और उनके युवा बच्चे इस बात को लेकर शर्मिंदगी महसूस
करते हैं. फ़िल्म का ट्रेलर सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद एक चर्चा शुरू हुई है कि क्या माँ बाप की सेक्स लाइफ़ नहीं हो सकती?
इन सवालों के जवाब तो अलग हो सकते हैं, लेकिन ये बात तय है कि ट्रेलर ने लोगों को फ़िल्म के बारे में बात करने पर मजबूर किया है.
किसी फ़िल्म को लेकर उत्सुकता जगाने करने के लिए उसके ट्रेलर का महत्व होता है. जिस तरह एक किताब को एक हद तक उसके कवर से समझने की कोशिश की जाती है, उसी तरह एक फ़िल्म को उसके ट्रेलर और मार्केटिंग से भी आँका जाता है.
फ़िल्म समीक्षक जय प्रकाश चौकसे का कहना है, "भारतीय दर्शकों में 50 प्रतिशत ऐसे लोग हैं जो आदतन फ़िल्म देखने जाते हैं. आर्थिक उदारवाद के बाद से हिंदी फ़िल्मों को ट्रेलर के द्वारा आकर्षित करने का चलन बढ़ा है."
सोशल मीडिया के दौर में दर्शकों को सिनेमाघरों तक खींचकर लाने में ट्रेलर और टीज़र का बड़ा रोल होता है. इसी वजह से लोग अपनी फ़िल्म प्रमोट करने के लिए कई स्तर पर कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं, फ़िल्म के फ़र्स्ट लुक शेयर करते हैं और ट्रेलर बनाने में खासी मेहनत करते हैं.
कई बार ऐसा भी हुआ है कि फ़िल्मों के ट्रेलर फ़िल्म से बेहतर रहे हैं.
यश चोपड़ा की फ़िल्म 'दिल तो पागल है' के बारे में यही कहा जाता है कि उनकी फ़िल्म के ट्रेलर को लोगों ने ज़्यादा पसंद किया था.
जय प्रकाश चौकसे बताते हैं, "इसकी शुरुआत 90 के दशक से हुई. 'हम आपके हैं कौन' फ़िल्म की बात की जाए तो तब सलमान कोई बड़े स्टार नहीं थे, उनकी ज़्यादा हिट फ़िल्में नहीं थीं. उससे पहले बस सिर्फ़ 'मैंने प्यार किया' बड़ी फ़िल्म आई थी. लेकिन जब ऑडियन्स ने 'हम आपके हैं कौन' का ट्रेलर देखा तो वे बहुत खुश हुए."
ये वो समय था जब फ़िल्मों का प्रचार टीवी और सिनेमा हॉल में हुआ करता था. सलमान ख़ान की फ़िल्म 'हम आपके हैं कौन' का ट्रेलर भी सिनेमा में रिलीज़ किया गया था.
फ़िल्म बहुत बड़ी हिट हुई और सलमान स्टार बने.
जय प्रकाश चौकसे मानते हैं, "जबसे मल्टीप्लेक्स बने, टिकटों के दाम बढ़े, तब से ट्रेलर का महत्व बढ़ने लगा है. कई लोग आकर्षक ट्रेलर भी बनाते हैं. इनमें मुकेश भट्ट का नाम आता है. वह कई बार फ़िल्म की शूटिंग से पहले फ़िल्म का ट्रेलर शूट कर लिया करते थे."
जय प्रकाश चौकसे मानते हैं कि राम गोपाल वर्मा ट्रेलर बनाने में माहिर माने जाते थे.
फ़िल्म का ट्रेलर शो बॉक्स जैसा होता है. इंटरनेट के इस ज़माने में फ़िल्म देखने से पहले उसका अंदाज़ा ट्रेलर से लगाया जा रहा है.
2005 में आई अमिताभ बच्चन और रानी मुखर्जी की फ़िल्म 'ब्लैक' का ट्रेलर लगभग 7,85,000 से ज़्यादा लोगों ने देखा था.
अगर 'दबंग' की बात की जाए तो इसे लगभग 5,26,000 से ज़्यादा व्यूज़ मिले थे.
शाहरुख की फ़िल्म 'ज़ीरो' अभी बन ही रही है, लेकिन उस फ़िल्म की हल्की-हल्की झलक भी आना शुरू हो गई है.
पवन साह के पास स्मार्टफ़ोन नहीं है.
वह फ़ेसबुक पर भी नहीं हैं. फिर भी उन्हें पता है कि सांसद निशिकांत दुबे
के पैर धोकर पानी पीने की उनकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो चुकी हैं.
इस कारण वह मीडिया की सुर्ख़ियों में हैं. वे तस्वीरें उनके गांव
के लोगों के स्मार्टफोन से घूमते हुए उनके घर के लोगों तक भी पहुंची हैं. वह इसे 'भक्त' और 'भगवान' के बीच का मसला बताते हुए कहते हैं कि इसका उन्हें कोई मलाल नहीं है. उनके लिए वह पानी नहीं 'चरणामृत' है.
पवन साह अपने इस कृत्य को चाटुकारिता नहीं मानते. वे कहते हैं कि यह तो हमारी संस्कृति है. हम बड़े लोगों का आदर करते हैं और घर आए लोगों के पांव पखारने की परंपरा रही है.
"ऐसा तो केवट ने भगवान श्रीराम के लिए भी किया था. इस तरह के कई और उदाहरण भी हैं."
पवन साह ने बीबीसी से कहा, "देखिए, वह जो लाइट देख रहे हैं न, वह गोड्डा है और यह मेरा गांव. कितना नज़दीक है, लेकिन बीच में बहने वाली कझिया नदी के कारण हम लोग 6-7 किलोमीटर घूमकर गोड्डा जाते हैं."
"इसमें समय बर्बाद होता है. दिक्कत होती है, सो अलग. हम लोगों ने अपने सांसद से पंचायत भवन के सामने से गोड्डा के गुलज़ारबाग तक पुल बनवाने की मांग की थी. तभी मैंने प्रण किया था कि यह मांग पूरी होने के बाद मैं उनके पैर धोकर सार्वजनिक तौर पर पिऊंगा."
"उन्होंने हमारी मांग पूरी कर दी. वह (सांसद डॉक्टर निशिकांत दुबे) इसका शिलान्यास करने रविवार को मेरे गांव आए थे."
"यह उचित अवसर था, जब मैं अपनी भक्ति का प्रदर्शन कर सकता था. इसलिए मैंने भगवान मानकर उनका चरणामृत पी लिया. इस पर मुझे गर्व है."
कन्हवारा, झारखंड के गोड्डा ज़िले का एक बड़ा गांव है. रविवार को स्थानीय भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने इस गांव से गोड्डा को जोड़ने के लिए कझिया नदी पर प्रस्तावित पुल का शिलान्यास किया.
इस मौके पर सैकड़ों लोगों के सामने भाजपा से जुड़े पवन साह ने पीतल की थाली में उनके पांव धोए और फिर उस पानी को पी लिया.
सांसद महोदय ने यह तस्वीर अपने फ़ेसबुक पर पोस्ट की और पूरी घटना का विवरण भी लिखा. इसके तुरंत बाद यह तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई और लोगों ने उन्हें ट्रोल करना शुरू कर दिया.
बात बढ़ती देख सांसद निशिकांत दुबे उस कार्यकर्ता के साथ सोमवार को गोड्डा में मीडिया से रूबरू हुए और बताया कि उन्होंने पवन को पैर की धोवन पीने से मना किया था.
सांसद निशिकांत दुबे ने बीबीसी से कहा, "मैंने उसे (पवन को) पांव पखारने और उस पानी को पीने से मना किया, लेकिन उसकी ज़िद के सामने झुक गया."
"उसने अपने हाथों में चाकू ले रखा था. उसने कहा कि अगर मैं उसे रोकूंगा तो वह आत्महत्या कर लेगा. इस कारण मैंने उसे वह पानी पीने दिया."
"सार्वजनिक जीवन में हम लोग कई दफ़ा कार्यकर्ताओं की ज़िद के आगे झुकते हैं. ऐसा हर नेता के साथ होता है. इसमें कोई नई बात नहीं है. मैंने उनका सम्मान रखने के लिए उन्हें ऐसा करने दिया."
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