केंद्रीय मंत्री और राज्यसभा में नेता
अरुण जेटली मानसून सत्र में पहली बार 9 अगस्त को संसद पहुंचे थे. और पहले
ही दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनका सामना हुआ तो अजीबोगरीब
स्थिति पैदा हो गई.
उप-सभापति पद के लिए हुए चुनाव का नतीजा घोषित
होने के बाद नरेंद्र मोदी राज्यसभा पहुंचे थे. उन्होंने एनडीए के उम्मीदवार
हरिवंश नारायण सिंह से हाथ मिलाकर बधाई दी.वो अरुण जेटली के बराबर में अपनी सीट पर लौट रहे थे, तभी प्रधानमंत्री ने उनकी तरफ़ हाथ मिलाने के लिए बढ़ा दिया. लेकिन जेटली ने हाथ नहीं मिलाया. बस मुस्कुराकर नमस्ते किया.
और इस पल की तस्वीरें और वीडियो वायरल हो गया. तस्वीर में मोदी हाथ बढ़ाते दिख रहे हैं और उनके सामने जेटली हाथ जोड़कर मुस्कुरा रहे हैं.
कुछ लोगों ने इस घटना को सियासी चश्मे से देखना शुरू किया और अंदाज़े लगाने लगे कि क्या भाजपा के सबसे बड़े नेता और दूसरे वरिष्ठ नेता के बीच अचानक इस तरह की दूरियों की वजह क्या है?
इससे पहले पिछले तीन महीने से स्वास्थ्य लाभ ले रहे जेटली उप-सभापति के चुनावों में हिस्सा लेने राज्यसभा पहुंचे थे.
एनडीए के नेताओं ने मेज़ थपथपाकर उनका स्वागत किया. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पूर्व रक्षा मंत्री ए के एंटनी जैसे विपक्ष के नेता भी जेटली का हालचाल लेते दिखे.
लेकिन सबसे ज़्यादा चर्चा मोदी-जेटली की मुलाक़ात की हुई. और हाथ न मिलाने की वजह सियासी मतभेद नहीं, सेहत से जुड़ी थी.
असल में कुछ दिन पहले किडनी ट्रांसप्लांट का ऑपरेशन हुआ है और इसके बाद इंफ़ेक्शन होने का ज़्यादा ख़तरा रहता है. यही वजह है कि सर्जरी के बाद मरीज़ को कम से कम लोगों से शारीरिक संपर्क बनाने की हिदायत दी जाती है.
जेटली के सदन में आने के कुछ वक़्त बाद ही राज्यसभा के सभापति वेंकेय्या नायडू ने भी वहां मौजूद सांसदों को जेटली से हाथ न मिलाने को कहा.
वो ऑपरेशन के बाद पिछले तीन महीने से स्वास्थ्य लाभ ले रहे थे और उनके काम का ज़िम्मा पीयूष गोयल देख रहे थे. उम्मीद जताई जा रही है कि जल्द ही जेटली फिर से अपना कार्यभार संभाल सकते हैं.
लेकिन ये सवाल दिमाग में आ सकता है कि किडनी ट्रांसप्लांट के सफ़ल ऑपरेशन के बाद भी जेटली को हाथ क्यों नहीं मिलाना चाहिए? या क्यों फिर किसी से भी गले नहीं मिल सकते? शारीरिक संपर्क के लिए मना क्यों किया जाता और ऑपरेशन के बाद इंफ़ेक्शन कैसे मुसीबत खड़ी कर सकता है.
दरअसल, किडनी बीन के आकार वाला ऑर्गन है, जो रीढ़ के दोनों तरफ़ होती हैं. आम तौर पर माना जाता है कि ये पेट के पास होती है लेकिन असल में ये आंत के नीचे और पेट के पीछे की तरफ़ होती है.
हर किडनी चार या पांच इंच की होती है. इनका मुख्य काम होता है ख़ून की सफ़ाई यानी छन्नी की तरह ये लगातार काम करती रहती है. ये वेस्ट को दूर करती हैं, शरीर का फ़्लूड संबंधी संतुलन बनाने के अलावा इलेक्ट्रोलाइट्स का सही स्तर बनाए रखती हैं. शरीर का ख़ून दिन में कई बार इनसे होकर गुज़रता है.
ख़ून किडनी में पहुंचता है, वेस्ट दूर होता है और ज़रूरत पड़ने पर नमक, पानी और मिनरल का स्तर एडजस्ट होता है. वेस्ट पेशाब में बदलता है और शरीर से बाहर निकल जाता है.
ये भी मुमकिन है कि किडनी अपने सिर्फ़ 10 फ़ीसदी स्तर पर काम कर रही है और शरीर इसके लक्षण भी न दे, ऐसे में कई बार किडनी के गंभीर इंफ़ेक्शन और फ़ेल होने से जुड़ी दिक्कतों के बारे में काफ़ी देर से पता चलता है.
हर किडनी में लाखों छोटे फ़िल्टर होते हैं जिन्हें नेफ़्रोन कहा जाता है. अगर ख़ून किडनी में जाना बंद हो जाता है, तो उसका वो हिस्सा काम करना बंद कर सकता है. इससे किडनी फ़ेल हो सकती है.
लेकिन क्या किडनी बदलने के बाद मरीज़ सामान्य रह पाता है? दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल के नेफ़्रोलॉजी डिपार्टमेंट के डॉ डी एस राणा ने बताया कि किडनी ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया सामान्य नहीं है. इसमें आप एक शरीर से कोई अहम अंग निकालकर दूसरे शरीर में डालते हैं, तो ये जटिल तो है ही.
उन्होंने बताया, ''किडनी रिजेक्शन का ख़तरा हमेशा रहता है. किडनी बदलने के शुरुआती सौ दिनों में ख़तरे ज़्यादा होते हैं लेकिन बाद में भी ऐसा हो सकता है. किडनी ट्रांसप्लांट के एक साल के बाद भी कामयाब रहने की संभावनाएं 90 फ़ीसदी के क़रीब हैं.''
ब्रिटेन की नेशनल हेल्थ सर्विस के मुताबिक किडनी एक शरीर से निकालकर दूसरे में डालने के मामले में उम्र का इतना फ़र्क नहीं पड़ता लेकिन ये चीज़ें ज़रूरी हैं
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